Nirjala Ekadashi
धर्म में एकादशी तिथि (Nirjala Ekadashi) को महत्वपूर्ण माना गया है। इस व्रत को हर माह में 2 बार किया जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह में निर्जला एकादशी मनाई जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस एकादशी के व्रत को करने से साधक को सभी एकादशी व्रत का शुभ फल मिलता है। साथ ही सभी दुख दूर होते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) की सही डेट और शुभ मुहूर्त के बारे में (2 points to take care on Start and End of Fasting, 4 Muhurats for this day)
पंचांग के अनुसार, हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है, जिसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं. इस दिन निर्जला व्रत किया जाता है. आइए जानते हैं कि साल 2025 में निर्जला एकादशी व्रत कब है और पूजा का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा.
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Nirjala Ekadashi : Shuruat aur Samapan ke मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर निर्जला एकादशी मनाई जाती है। इस बार 6 जून को निर्जला एकादशी व्रत किया जाएगा।
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत- 06 जून को देर रात 02 बजकर 15 मिनट पर
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का समापन- 07 जून को सुबह 04 बजकर 47 मिनट पर
Nirjala Ekadashi – व्रत पारण का टाइम (Vrat Ka Paran Time)
एकादशी व्रत का पारण अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर किया जाता है। व्रत का पारण करने का समय दोपहर 01 बजकर 44 मिनट से लेकर शाम 04 बजकर 31 मिनट तक है।ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 04 बजकर 02 मिनट से 04 बजकर 42 मिनट तक
विजय मुहूर्त – दोपहर 02 बजकर 39 मिनट से 03 बजकर 35 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त – शाम 07 बजकर 16 मिनट से 07 बजकर 36 मिनट तक
निशिता मुहूर्त – रात 12 बजे से 07 जून को रात 12 बजकर 40 मिनट तक
Benefits and Points to Take Care
Nirjala Ekadashi (निर्जला एकादशी) व्रत के लाभ
ऐसा माना जाता है कि निर्जला एकादशी व्रत करने से सभी पापों का नाश होता है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है. धार्मिक मान्यता है कि निर्जला एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्ति की होती है. निर्जला एकादशी का व्रत करने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है और व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास होता है. निर्जला एकादशी के दिन अन्न और धन का दान करने से धन लाभ के योग बनते हैं और तिजोरी हमेशा भरी रहती है
इन बातों का रखें ध्यान (To Take Care)
एकादशी तिथि पर चावल का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए। साथ ही किसी से भी कोई वाद-विवाद न करें। बड़े-बुर्जुगों और महिलाओं का अपमान न करें। काले रंग के वस्त्र धारण न करें। इसके अलावा मांस, लहसुन, प्याज के सेवन से दूर रहना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि निर्जला एकादशी के नियम का पालन करने से साधक और परिवार के सदस्य पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। साथ ही जीवन में शुभ परिणाम मिलते हैं।
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करें इन चीजों का दान (To Donate)
निर्जला एकादशी व्रत का पारण करने के बाद अन्न, धन और कपड़े समेत आदि चीजों का दान जरूर करना चाहिए। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इन चीजों का दान करने से व्रत का पूर्ण फल मिलता है। साथ ही भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी (निर्जला) की तारीख को लेकर पंचांग भेद हैं। कुछ पंचांगों में 17 जून और कुछ में 18 जून को निर्जला एकादशी बताई गई है। ये व्रत सालभर की सभी एकादशियों के बराबर पुण्य फल देने वाला माना गया है, इसलिए इसे साल की सबसे बड़ी एकादशी भी कहते हैं।
इस एकादशी को पांडव और भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। महाभारत काल में पांडव पुत्र भीम ने भी ये व्रत किया था। इस वजह से इस एकादशी को भीमसेनी नाम मिला है। ये व्रत करने के साथ ही भक्तों को मौसमी फल जैसे आम, मिठाई, पंखा, कपड़े, जूते-चप्पल, धन, अनाज का दान जरूर करना चाहिए।
इस दिन बाल गोपाल, भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का विशेष अभिषेक करना चाहिए। सोमवार को ये तिथि होने से इस दिन शिव जी का भी रुद्राभिषेक जरूर करें। साथ ही शिवलिंग पर चंदन का लेप भी करना चाहिए।
निर्जला एकादशी व्रत निर्जल रहकर किया जाता है। इस दिन अन्न और पानी का भी सेवन नहीं किया जाता है। तभी इस व्रत का पूरा पुण्य मिलता है। गर्मी के दिनों में दिनभर भूखे-प्यासे रहना काफी मुश्किल है, इसी वजह से ये व्रत तपस्या की तरह माना जाता है। गर्भवती महिला, बीमार, बच्चे और बूढ़े दिनभर भूखे-प्यासे नहीं रह सकते हैं, इसलिए इन्हें इस व्रत खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। जिन लोगों के लिए भूखे-प्यासे रहना मुश्किल है, वे व्रत में फलों का, दूध का सेवन कर सकते हैं।
इस दिन विष्णु जी के मंत्र ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जप करना चाहिए। सुबह-शाम विष्णु पूजा करें। अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर सुबह जल्दी उठें, पूजा-पाठ करें और जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाएं। इसके बाद ही खुद खाना खाएं। इस तरह ये व्रत पूरा होता है।
Nirjala Ekadashi : संक्षिप्त विधि
प्रचलित कथा के अनुसार महाभारत काल में महर्षि वेद व्यास एक दिन पांडवों को एकादशी व्रत का महत्व बता रहे थे। तब भीम ने व्यास जी से कहा था कि मैं तो भूखे रह ही नहीं पाता हूं। ऐसे में मुझे एकादशी व्रत का फल कैसे मिल सकता है?
व्यास जी ने भीम को बताया कि निर्जला एकादशी के व्रत से सालभर की एकादशियों का पुण्य कमाया जा सकता है। इसके बाद भीम ने भी ये व्रत किया था। तभी से इस व्रत को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।
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